THE SPAN PROPERTIES (A Complete Real Estate Solutions)
 
विधान

नाम

1. इस संस्था का नाम ‘केन्द्रीय सचिवालय हिन्दी परिषद’ होगा।

उद्देश्य

2. (क) केन्द्रीय सरकारी कार्यालयों और संबद्ध कार्यालयों में हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रति अभिरूचि उत्पन्न करना, हिन्दी को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करना और उस दिशा में किए जाने वाले कार्यों में सहयोग देना, और

(ख) साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना।

सदस्यता

3. केन्द्रीय सरकारी कार्यालयों और सम्बद्ध कार्यालयों का परिषद के उद्देश्यों से सहानुभूति रखने वाला कोई भी व्यक्ति 10 रूपए वार्षिक सदस्यता शुल्क देकर परिषद का सदस्य बन सकेगा। एक मुश्त 101 रूपये शुल्क देने पर ऐसा कोई भी व्यक्ति परिषद का आजीवन सदस्य बन सकेगा।

प्रतिनिधि सभा

4. (क) परिषद के समग्र कार्यों के संचालन की शक्ति एक प्रतिनिधि सभा में निहित होगी, जिसका गठन निम्नलिखित रूप से किया जाएगाः-

(1) प्रत्येक कार्यालय की शाखा के प्रति पच्चीस सदस्यों का एक प्रतिनिधि परन्तु किसी एक शाखा या कार्यालय के प्रतिनिधियों की संख्या एक समय में चार से अधिक न होगी, जिन कार्यालयों में सदस्य संख्या पच्चीस के कम हो ऐसे कार्यालयों के सुविधानुसार समूह बनाकर उन्हें भी प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था की जा सकेगी।

(2) शाखाओं के प्रधान और मंत्री

(3) पन्द्रह से अनधिक सहयोजित सदस्य, जिनका नाम निर्देशन कार्य समिति द्वारा किया जाएगा और यह ऐसा करते समय उपर्युक्त (1) के अर्न्तगत प्रतिनिधित्व न पाने वाले कार्यालयों का समुचित ध्यान रखेगी।

(4) प्रतिनिधि सभा परिषद के हित में किसी विद्वान, नेता या सरकारी अधिकारी को अपना संरक्षक बना सकेगी, तथा

(5) परिषद का सदस्य बनने का अधिकारी कोई भी व्यक्ति 350 रूपये शुल्क देकर, प्रतिनिधि सभा का आजीवन सदस्य बन सकेगा। ऐसे सदस्यों को प्रतिनिधि सभा के अन्य सदस्यों की तरह सभी अधिकार प्राप्त होंगे। परन्तु सेवा निवृत्ति के बाद वे कोई पद ग्रहण नहीं कर सकेंगे।

(ख) (1) सभा की बैठक केवल दिल्ली में वर्ष में कम से कम एक बार अवश्य हुआ करेगी, जिसमें वर्ष भर के आय-व्यय का विवरण और परिषद के कार्यों की रूपरेखा स्वीकृति के लिए प्रस्तुत की जाएगी। सभा की बैठक की सूचना महामंत्री द्वारा जारी की जाएगी।
(2) सभा के एक चौथाई सदस्यों के लिखित अनुरोध पर महामंत्री सभा की विशेष बैठक ऐसे अनुरोध की तिथि के एक मास के भीतर बुलाएगा।
(3) प्रधान, महामंत्री और कार्यसमिति के अन्य सदस्यों का चुनाव परिषद की द्वि वार्षिक बैठक में किया जाएगा। चुनाव की कार्रवाई कार्यसमिति द्वारा नामित चुनाव अधिकारी की देख-रेख में सम्पन्न होगी। उसके लिए ऐसी प्रक्रिया अपनाई जाएगी जो निष्प्क्ष तथा पारदर्शी होगी। चुनाव कार्यक्रम की अधिसूचना चुनाव अधिकारी द्वारा चुनाव की तारीख कार्यक्रम से कम से कम 21 दिन पूर्व जारी की जाएगी।
(4) प्रतिनिधि सभा की वार्षिक बैठक में भाग लेने के लिए 300 किलो मीटर से अधिक दूरी वाले स्थानों की शाखाओं से आने वाले एक प्रतिनिधि का दूसरे दर्जे का शायिका (जहाँ रात्रि यात्रा आवश्यक हो) किराया उन्हीं शाखाओं को केन्द्र की ओर से दिया जा सकेगा जिनका अर्धांश केन्द्र में प्राप्त हो गया हो। परन्तु इसकी राशि केन्द्र के अंश की प्राप्त हुई राशि से अधिक न होगी। शाखाएँ अपनी कार्यसमिति की अनुमति से प्रतिनिधियों के शेष व्यय के लिए अपने साधनों से प्रबन्ध कर सकेंगी।

(ग) प्रतिनिधि सभा का कार्यकाल साधारणतः दो वर्ष होगा, किन्तु विशेष स्थिति में सभा के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत द्वारा यह एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकेगा।

(घ) सभा अपने कार्य संचालन के लिए अपने प्रक्रिया-नियम यथावसर बना सकेगी।

(ड.) सभा की गणपूर्ति उसकी कुल सदस्य संख्या का बीस प्रतिशत या पच्चीस सदस्य, जो भी कम हो, होगी। गणपूर्ति के अभाव में स्थगित होने पर पुनः बुलाई गई बैठक में कोई नया विषय नही उठाया जाएगा।

(च) प्रतिनिधि सभा एक आय-व्यय लेखा परीक्षक की नियुक्ति करेगी, जो कार्य समिति से बाहर का व्यक्ति होगा।

(छ) प्रतिनिधि सभा परिषद के हित में परामर्शदातृ समिति का गठन करेगी जिसमें सदस्यों के रूप में ऐसे सेवा निवृत व्यक्ति रहेंगे जिनका परिषद के कार्य में दीर्घकाल तक सक्रिय सहयोग रहा हो। इस समिति के सदस्यों को कार्य समिति की बैठकों में स्थायी रूप से आमंत्रित किया जाएगा, उन्हें कार्य समिति के अन्य सदस्यों के समकक्ष माना जाएगा किन्तु मत विभाजन की स्थिति में परामर्शदातृ समिति के सदस्य भाग नही ले सकेंगे, और उनके परामर्श को गंभीरता से लिया जाएगा। यह समिति स्थायी होगी, जब तक कि प्रतिनिधि सभा उसका पुनर्गठन न करे।

कार्य समिति

5. (क) परिषद के उद्देश्यों के अनुसार उसके समग्र कार्यों का संचालन करने के लिए एक कार्यसमिति होगी, जिसका गठन निम्नलिखित रूप से होगा।

(1) प्रतिनिधि सभा द्वारा परिषद के सदस्यों में से निर्वाचित एक प्रधान
(2) प्रतिनिधि सभा द्वारा परिषद के सदस्यों में से निर्वाचित एक महामंत्री, और 25 अन्य सदस्य जिनमें से कम से कम 10 सदस्य दिल्ली से बाहर के नगरों के होंगे।
(3) उपर्युक्त (1) और (2) के अर्न्तगत चुने गए व्यक्तियों द्वारा सहयोजित 7 से अनधिक अन्य सदस्य

(ख) (1) महामंत्री के परामर्श से प्रधान उपर्युक्त (क) (2) और (3) में उल्लिखित सदस्यों में से तीन उपप्रधान और आठ अन्य मंत्री नियुक्त करेगा और तीनों उन-प्रधानों का वरिष्ठताक्रम भी निश्चित करेगा। मंत्री क्रमशः प्रबंध, साहित्य एवं संस्कृति, संगठन, प्रचार, प्रकाशन, प्रतियोगिता, कार्यालय और अर्थ का भार संभालेंगे।
(2) वर्ष के बीच में प्रधान, महामंत्री या कर्यसमिति के सदस्य का पद रिक्त होने पर शेष अवधि के लिए उसकी पूर्ति कार्य समिति नाम निर्देशन द्वारा ऐसे व्यक्ति से करेगी जो परिषद की प्रतिनिधि सभा का सदस्य हो।
(3) महामंत्री के परामर्श से प्रधान यथावश्यकता अधिक से अधिक चार उपमंत्रियों की नियुक्ति कर सकेंगे जो उपमंत्री कार्य समिति का सदस्य न हो उसे कार्स समिति की बैठकों में भाग लेते समय मतदान का अधिकार न होगा।

(ग) कार्य समिति की गणपूर्ति उसकी कुल संख्या का एक चौथाई होगी। गणपूर्ति के अभाव में स्थगित होने पर पुनः बुलाई गई बैठक पर गणपूर्ति का प्रतिबन्ध लागू न होगा, किन्तु उसमें कोई नया विषय न उठाया जाएगा।
(घ) कार्य समिति अपने कार्य संचालन के लिए प्रक्रिया -नियम यथावसर बना सकेगी। यह विशेष अभिप्राय से विशेष समितियों या उप समितियों को गठित कर सकेगी और उसको सामान्य या विशिष्ट निर्देश दे सकेगी।
(ड.) कार्य समिति का कार्यकाल दो वर्ष होगा, किन्तु विशेष स्थिति में अनुच्छेद 4 (ग) के अधीन प्रतिनिधि सभा का काल बढ़ने पर उसका काल भी तद्नुसार बढ़ जाएगा।
(च) कार्य समिति की बैठक में भाग लेने के लिए बाहर के किसी नगर से आए सदस्य को मार्ग-व्यय देने का निर्णय कार्य समिति कर सकेगी।
(छ) महामंत्री के पद पर कोई व्यक्ति लगातार दो अवधियों से अधिक न रहेगा।

शाखाएँ

6. (क) जिस कार्यालय में परिषद के पचास या अधिक सदस्य हों, वहां परिषद की शाखा का गठन किया जा सकेगा।
(ख) शाखा परिषद के सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य करेगी।
(ग) शाखा अपने कार्य संचालन के लिए एक कार्य समिति निम्न प्रकार से गठित करेगीः-
(1) शाखा की साधारण सभा द्वारा निर्वाचित एक प्रधान, दो उप-प्रधान, एक मंत्री, दो उप-मंत्री, एक कोषाध्यक्ष और छह से दस तक अन्य सदस्य, किन्तु शाखा की साधारण सभा को यह विकल्प होगा कि वह उप-मंत्रियों का चुनाव स्वयं करें तथा शाखा प्रधान के परामर्श से, शाखा मंत्री को समिति किन्हीं भी दो सदस्यों को उप-मंत्री नियुक्त करने की स्वीकृति दे दें। अन्य सदस्यों की वांछित संख्या तथा उप-मंत्रियों के चुनाव अथवा नियुक्ति का निर्णय चुनाव से पूर्व उसी बैठक में कर लिया जाएगा, तथा
(2) उपर्युक्त (ग) (1) के अधीन चुने गए व्यक्तियों द्वारा आवश्यक होने पर सहयोजित दो सदस्य।
(3) वर्ष के बीच मे किसी पदाधिकारी का स्थान रिक्त होने पर शेष अवधि के लिए उसकी पूर्ति शाखा की कार्य-समिति नाम निर्देशन द्वारा करेगी।
(4) सेवा निवृत्ति के बाद सदस्य कोई पद ग्रहण नहीं कर सकेंगे।
(घ) (ग) (1) में उल्लिखित व्यक्तियों का चुनाव परिषद के महामंत्री अथवा उसके द्वारा अधिकृत अन्य कार्यकर्त्ता की देख-रेख में सम्पन्न होगा। इसी अवसर पर प्रतिनिधि सभा के लिए शाखा के प्रतिनिधि और लेखा परीक्षक (जो कार्य समिति से बाहर का व्यक्ति होगा) भी चुने जाएंगे। ये प्रतिनिधि शाखा की कार्यसमिति के पदेन सदस्य होंगे।
(ड.) शाखाओं के सदस्यों से प्राप्त सदस्यता शुल्क का आधा भाग शाखाओं के पास रहेगा और शेष परिषद के अर्थ-मंत्री के पास भेज दिया जाएगा।
(च) शाखाएँ अपने कार्य संचालन के लिए प्रक्रिया-नियम यथावसर बना सकेंगी। शाखा मंत्री, प्रधान अथवा कोषाध्यक्ष द्वारा व्यय करने के अधिकार की सीमा शाखाओं की कार्य समिति निर्धारित करेगी अन्यथा शाखा मंत्री को किसी एक मद पर एक बार में 50/- रूपये तक व्यय करने का अधिकार होगा।
(छ) शाखा के सदस्यों की साधारण सभा और कार्य समिति का गणपूरक वही होगा, जो इस विधान में क्रमशः केन्द्र की प्रतिनिधि सभा और कार्य-समिति के लिए विहित किया गया है।
(ज) शाखा मंत्री शाखा के कार्य का वार्षिक प्रतिवेदन और लेखा परीक्षक द्वारा परीक्षित लेखे की प्रमाणित प्रति शाखा की साधारण सभा की वार्षिक बैठक में अनुमोदित कराकर महामंत्री के पास भेजेगा।
(झ) शाखा के सदस्यों की साधारण सभा शाखा के हित में किसी विद्वान, नेता या सरकारी अधिकारी को शाखा का संरक्षक बना सकेगी।

समन्वय समिति

7. (क) दिल्ली से बाहर जिन नगरों में पाँच या अधिक शाखाऐं हों वहाँ के कार्य का समन्वय करने के लिए प्रत्येक नगर में एक समन्वय समिति का गठन किया जा सकेगा।
(ख) इस समिति का गठन नगर की सभी शाखाओं के मंत्रियों तथा प्रत्येक शाखा की कार्य-समिति द्वारा चुने गए एक-एक प्रतिनिधि को मिलाकर होगा।
(ग) कार्य-संचालन के लिए यह समिति एक प्रधान, एक मंत्री, एक कोषाध्यक्ष तथा एक लेखा-परीक्षक चुनेगी। यह चुनाव महामंत्री अथवा उसके द्वारा अधिकृत कार्यकर्ता की देखरेख में सम्पन्न होगा।
(घ) यदि आवश्यक हुआ तो यह समिति अन्य कुछ व्यक्तियों को भी सहयोजित कर सकेगी।
(ड.) समिति को अपने कार्य-व्यय के लिए नगर के सदस्यों से प्राप्त कुल सदस्यता शुल्क का दस प्रतिशत परिषद के केन्द्रीय कार्यालय की ओर से तथा दस प्रतिशत शाखाओं की ओर से मिलेगा। इस राशि और उसके अर्न्तगत हुए व्यय का हिसाब समिति का मंत्री समिति के पारित कराकर अर्थ मंत्री को प्रति वर्ष भेजेगा।
(च) इस समिति का कर्तव्य होगा कि जो कार्यक्रम परिषद की कार्य समिति अथवा महामंत्री द्वारा नगर के कई कार्यालयों में करने के लिए निर्धारित किए जाएं उनके सम्पन्न करने के लिए स्थानीय शाखाओं के सहयोग से उचित प्रबन्ध करे। समिति स्थानीय शाखाओं के सुझाव पर, अथवा अपने आप नगर में परिषद के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कोई कार्यक्रम अपने हाथ में ले सकेगी। अथवा विभिन्न शाखाओं के लिए निर्धारित कर सकेगी।
(छ) समन्वय समिति अपने कार्य संचालन के प्रक्रिया नियम यथावसर बना सकेगी। इन नियमों की एक प्रति समिति का मंत्री, महामंत्री को भेजेगा।
(ज) समन्वय समिति को सौंपे गए कार्यों को छोड़कर अन्य बातों पर शाखाओं तथा परिषद के केन्द्रीय कार्यालय का सीधा सम्पर्क रहेगा।
(झ) समन्वय समिति तथा किसी शाखा के मध्य किसी बात पर मतभेद होने पर महामंत्री अथवा उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति का निर्णय सर्वमान्य होगा।

अनुशासन

8. (क) परिषद के विधान, हित या उद्देश्य के विरूद्ध कार्य करने वाले सदस्य पर अनुशासन की कार्रवाही की जा सकेगी। इसके लिए आवश्यकता पड़ने पर परिषद की कार्यसमिति अनुशासन समिति का गठन करेगी, जिसमें परिषद की परामर्शदातृ समिति के एक वरिष्ठ सदस्य तथा कार्यसमिति द्वारा अपने में से नामित दो सदस्य होंगे। इस समिति की सिफारिश पर प्रधान अनुशासन भंग करने वाले किसी व्यक्ति को उसके पद से निलम्बित कर सकेंगे। अरोपित सदस्य का लिखित स्पष्टीकरण मांगा जाएगा और उस पर विचार करने के पश्चात् अनुशासन समिति की सिफारिश पर प्रधान ऐसे सदस्य को परिषद से निष्कासित कर सकेंगे।
(ख) प्रतिनिधि सभा शाखाओं को उनके कार्य-संचालन में अव्यवस्था होने पर उपर्युक्त निदेश दे सकेगी, जिनका पालन शाखाओं के लिए बाध्यकारी होगा। आवश्यकता पड़ने पर प्रतिनिधि सभा ऐसी शाखा की सम्पत्ति तथा अभिलेख पर अधिकार करके उसका पुनर्गठन करा सकेगी। 

संशोधन और निर्वचन

9. (क) इस विधान में संशोधन प्रतिनिधि सभा के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत द्वारा उस बैठक में किया जा सकेगा, जिसकी कार्य-सूची में यह विषय पहले से शामिल कर लिया गया हो और जिसकी सूचना कम से कम एक सप्ताह पहले दी गई हो।
(ख) इस विधान के किसी उपबन्ध के अर्थ निर्णय या निर्वचन में कोई संशय उत्पन्न होने पर उसका निर्णय परिषद का प्रधान या बैठक का सभापति स्वविवेक द्वारा करेगा।

प्रकीर्ण

10. (क) परिषद का कार्य-वर्ष राष्ट्रीय (शक) सम्वत् होगा।
(ख) परिषद का प्रधान कार्यालय दिल्ली में होगा।
(ग) परिषद का कार्य क्षेत्र वे सभी स्थान होंगे, जहाँ-जहाँ केन्द्रीय सरकार के कार्यालय हैं।
(घ) सम्बद्ध कार्यालयों में केन्द्रीय सरकार के संलग्न कार्यालय, स्वायत्त संस्थाएं, निगम, सरकारी उपक्रम, आयोग, अधिकरण, राष्ट्रीयकृत बैंक आदि समाविष्ट माने जाएंगे।
(ड.) महामंत्री को किसी एक मद पर एक बार 1000/- रूपये व्यय करने का अधिकार होगा तथा कार्य-समिति को किसी एक मद पर 5000/- रूपये व्यय करने का अधिकार होगा। इससे अधिक व्यय करने के लिए क्रमशः मंत्री परिषद तथा प्रतिनिधि सभा का अनुमोदन प्राप्त करना होगा।
(च) सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट की धाराएं 4ए12ए13ए तथा 14 परिषद के विधान का अंग मानी जाएंगी।

विगठन

11. प्रतिनिधि सभा तथा तीन चौथाई बहुमत द्वारा परिषद को विगठित करने का निर्णय कर सकेगी और इस प्रस्ताव के स्वीकृत और परिषद की सम्पत्ति आदि के निपटारे का निर्णय होने के पश्चात् परिषद भंग हो जाएगी। लेन-देन का हिसाब करने पर बची हुई सम्पत्ति अधिकतम समान उद्देश्य वाली किसी संस्था को दे दी जायेगी। इसका निर्णय निबटारे के ढंग की अन्य बातों के निर्णय के साथ-साथ प्रतिनिधि सभा की इसी बैठक में किया जाएगा।

 

 
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